राजनीति में अक्सर होता यह है कि चुनाव में कोई मुद्दा काम कर जाता है और किसी राजनीतित दल या कुछ दलों को जीत मिल जाती है तो मान लिया जाता है कि चुनाव जीतने का रामबाण फार्मूला मिल गया है। सभी चुनाव में उसका उपयोग कर चुनाव जीत लेना चाहते हैं। महिलाओं का वोट हासिल कर लेना चाहते हैं। पर राजनीतिक दलों के लिए आधी आबादी का वोट हासिल करना अब इतना आसान नहीं रहा। कम से कम लोकसभा चुनाव में तो महिला वोटरों को साधना इतना आसान नहीं है।
राज्य के चुनाव में महिलाओं को जरूर साधा जा सकता है, उनसे किए वादे पूरे किए जा सकते हैं क्योंकि राज्य में महिलाओं की संख्या कम होती है लेकिन लोकसभा चुनव में कोई महिलाओं को एक लाख रुपए साल का देने का वादा कर उम्मीद करे कि महिलाओं वोट दें देगी तो यह उसका वहम है। भाजपा ने छत्तीसगढ़ व मप्र में महिलाओं को महतारी वंदन योजना व लाडली बहना योजना से हारा हुआ चुनाव जीत लिया तो कांग्रेस को वहम हो गया कि वह लोकसबा चुनाव महिलाओं को एक लाख रुपए सालाना देकर चुनाव जीत सकती है।
कांग्रेस भूल गई कि राज्य मे महिलाओं की संख्या कम होती है और देश में ज्यादा होती है। राज्य की महिलाओं को तो चुनाव जीतने के लिए, पार्टी का अपना महिला वोट बैंक बनाने के लिए दस बीस लाख महिलाओं को पैसा दिया जा सकता है। लेकिन लोकसभा चुनाव में वादा करने का मतलब कि पांच से दस करोड़ महिलाओं को पैसा देना पड़ेगा। इतनी महिलाओं को एक लाख रुपए सालना देना का मतलब है कि बजट का एक बड़ा हि्स्सा इसी में खर्च होना है। राहुल गांधी ने यह तो बताया कि महिलाओं को सालाना एक लाख रूपे देंगे लेकिन वह यह बताना तो भूल गए कि कितनी महिलाओं को देंगे। इसके लिए कितना पैसा लगेगा,यह पैसा कहां से आएगा. इसलिए इस योजना को लेकर देश व राज्य की महिलाओं में कोई उत्साह नहीं दिखता है।
ऐसे राज्य में महिलाएं जहां उनको योजना का लाभ मिल रहा है,कांग्रेस की योजाना के लिए कोई उत्साह नहीं दिखा रही है.उन्हें महीना एक हजार व साल का १२ हजार रुपए मिल रहा है तो वह उसी खुश हां कि उन्हे राज्य में सराकर से मदद मिल तो रही है। फिर माहौल भी बना हुआ है कि देश में फिर से मोदी की सरकार आ रही है, इसलिए भी महिलाएं कांग्रेस के एक लाख सानाना वादे पर भरोसा नहीं कर रही हैं.।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सोचा था कि वह भी एक लाख सालना योजना का फार्म भरवाएंगे तो महिलाओं की भीड़ लग जाएगी, कुछ ही दिनों में लाखों महिलाओं फार्म भरे देंगी व वोट दे देंगी। वैसा कुछ माहौल कांंग्रेस काय्र्कर्ता नहीं बना पाए जैसा माहौल भाजपा कार्यकर्ताओं में विधानसभा चुनाव के समय बना दिया था। भाजपा कार्यकर्ता तो गाव गांव तक फार्म लेकर पहुंच गए थे और चुनाव के पहले ही लाखों फार्म भरवाकर माहौल बना दिया था। महिला वोटरों को भाजपा से जोड़ लिया और उसका फायदा भाजपा को विधानसभा चुनाव में हुआ।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के चुनाव हारते ही तथा केंद्र का चुनाव भाजपा जीत रही यह माहौल बनते ही कांग्रेस से पलायन का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह थमा नहीं है हजारों कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो चुके है, इससे स्वाभाविक है कि कांग्रेस के पास नेताओं व कार्यकर्ताओं की कमी हो गई है। जो बचे हैं, वह विधानसभा चुनाव की हार से पस्त है तथा लोकसभा चुनाव में भी हार को देखते हुए निराश हताश हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ती दिख नहीं रही है।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में इन दिनों वही निराशा है जो १८ में चुनाव हारने के बाद भाजपा में थी। इस निराशा को कोई दूर नहीं कर पा रहा है, छत्तीसगढ़ कांंग्रेस प्रभारी सचिन पायलट ने कहा जरूर है कि चुनाव के दूसरे तीसरे चरण में भाजाप साउथ से साफ और नार्थ में हाफ हाे जाएगा। सचिन ने यह नेताओं व कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए यह कहा है लेकिन इससे कांग्रेस में उत्साह को कोई संचार शायद ही हो।सचिन को छत्तीसगढ़ का प्रबार संंभाले कई माह हो गए है लेकिन वह पार्टी की मजबूती के लिए कुछ खास नहीं कर सके हैं। लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनका हश्र भी वही होना है जोौ पुनिया व शैलजा का हुआ।
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