रायपुर। न्यू राजेंद्र नगर स्थित वर्धमान जैन मंदिर के मेघ-सीता भवन में चल रहे आत्मकल्याण वर्षावास 2024 की प्रवचन श्रृंखला में मंगलवार को परम पूज्य श्रमणतिलक विजय जी ने कहा कि हमें अपनी आत्मा को श्रेष्ठ बनने के लिए भगवान महावीर के आदर्शों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। एक साधु भी अगर सावधानी नहीं रखता है तो परिस्थिति बदल सकती है, एक छोटी सी चूक भी मोक्ष प्राप्त करने का खेल बिगाड़ सकती है।
मुनिश्री ने बताया कि एक बार की बात है महाराज वासुदेव शयनकक्ष में सोने जा रहे थे और उस समय बाहर संगीत का आयोजन किया गया था। मधुर संगीत को सुनते हुए वासुदेव सोना चाहते थे और अपने शयनकक्ष में चले गए और उन्होंने दरबारी को कहा कि जैसे ही मैं सो जाऊं संगीत को बंद करवा देना। वासुदेव सो गए और संगीत बजता रहा क्योंकि दरबारी संगीत सुनने में मग्न था और उसने यह नहीं देखा कि वासुदेव सो गए हैं। वासुदेव नींद में तो थे लेकिन लगातार संगीत की आवाज से वह ठीक से सो नहीं पा रहे थे और ऐसे में उन्होंने बाहर आकर देखा तो दरबारी संगीत सुनने में मग्न था। इतना देखते ही वासुदेव क्रोधित हो गए, उनका क्रोध इतना बढ़ गया कि वह हिंसा पर उतर आए और उन्होंने दरबारी के कान में पिघला हुआ कांच डलवा दिया।
मुनिश्री ने कहा कि वासुदेव ने ऐसी हिंसा की क्योंकि उनके अंदर अहंकार आ गया। यह अहंकार सबसे खतरनाक कषाय है और व्यक्ति इसे पहचान नहीं पाता है। यह अहंकार वैसे तो छोटे बच्चों के अंदर भी होता है लेकिन हम इसे देख नहीं सकते है। जबकि हमें अगर गुस्सा आ जाए तो देखकर पता चल ही जाता है जबकि अहंकार किसी व्यक्ति को देखकर नहीं पहचाना जा सकता है। लोगों में इस कदर अहंकार आ चुका है कि वे मंदिर में भगवान के सामने भी झुकना पसंद नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने से उनकी कपड़ों की प्रेस खराब हो जाती है। आज लोग भगवान से मोक्ष मांगने की बजाय धन-दौलत, मान-सम्मान जैसी हल्की चीज मांगने लगे हैं। एक किसान भी खेत में मेहनत करके अनाज पैदा करता है और उसके साथ-साथ उसे खेतों से घास भी मिल जाती है। अब आपको यह तय करना होगा कि आपको घास के लिए मेहनत करनी है या अनाज के लिए। वैसे भी भगवान की कृपा से आपको वह सब कुछ मिल जाता है जिसकी जरूरत जीवन यापन करने की हो। लेकिन आज अगर किसी के पास थोड़े से पैसे आ जाए तो उसके अंदर अहंकार आ जाता है। इस अहंकार से विवेक खत्म हो जाता है। वासुदेव ने एक क्षण भी यहां नहीं सोचा की दरबारी को यह समझ में नहीं आया होगा कि मैं सो गया हूं इसके लिए उसे माफ़ भी किया जा सकता है। क्योंकि इसी अहंकार से क्रोध आता है और फिर आवेश और उसके बाद व्यक्ति हिंसा पर उतर जाता है। मुनिश्री ने आगे बताया कि हिंसा को क्रोध की बहन कहा गया है जैसे-जैसे क्रोध आगे बढ़ेगा वैसे यह बहन शस्त्र उठाकर उसके पीछे आने लगेगी। वासुदेव ने दरबारी के कान में पिघला हुआ कांच डाल दिया लेकिन इससे भगवान नहीं रूठेंगे, यह कर्मसत्ता रूठ जाएगी और यह कर्मसत्ता एक बार रूठ गई तो उसे मनाना आपके लिए बहुत टेढ़ी खीर साबित होगी। किसी की मजबूरी का आज आप अगर फायदा उठा रहे हो तो यह याद रखना कर्मसत्ता आपसे जरूर बदला लेगी और एक दिन आपको उस कृत्य का चार गुना भुगतान भुगतना होगा। अक्षयनिधि, समवसरण व कषाय विजय तप 23 अगस्त से आत्मकल्याण वर्षावास समिति 2024 के अध्यक्ष अजय कानूगा एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष धरम राज बेगानी ने बताया कि न्यू राजेंद्र नगर स्थित वर्धमान जैन मंदिर में अक्षनिधि, समवसरण और कषाय विजय तप की शुरूआत 23 अगस्त से होने जा रही है। तपस्वियों के एकासने एवं क्रिया संबंधी समस्त व्यवस्था समिति की ओर से की जाएगी।
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