सकल जैन समाज ने 84 लाख जीवायोनि से की क्षमायाचना


रायपुर। आचार्य जिनमणिप्रभ सूरीश्वर द्वारा प्रतिष्ठित जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी, भैरव सोसायटी में श्वेतांबर दिगम्बर परम्परा के पर्युषण पर्व पश्चात सकल जैन समाज ने 84 लाख जीवायोनि से मन वचन काया से क्षमायाचना की व सभी जीवों को क्षमा प्रदान की। सीमंधर स्वामी जैन मंदिर व दादाबाड़ी ट्रस्ट के अध्यक्ष संतोष बैद व महासचिव महेन्द्र कोचर ने बताया कि चारों दादागुरुदेव ने जिनमार्ग में क्षमा को श्रेष्ठ धर्म बताया है। क्षमा मांगना व क्षमा प्रदान करना वीरों का कार्य है और महावीर स्वामी के अनुयायी ही यह कार्य करते हैं।

जैन दादाबाड़ी में सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में दादागुरुदेव का जयकारा लगाते हुए बड़ी पूजा का आगाज स्थापना के मंत्रों के साथ किया स्थापना नारियल चावल एवं द्रव्य के समर्पण मंत्र के साथ की। इसकी जानकारी देते हुए सीमंधर स्वामी जैन मंदिर व दादाबाड़ी ट्रस्ट के महासचिव महेन्द्र कोचर ने कहा की, स्थापना के पश्चात ,बड़ी पूजा का प्रारंभ संगीतमय चोपाई दोहों के साथ सुप्रसिद्ध भजन गायिका दिप्ती बैद ने किया। इसी प्रकार बड़ी पुजा के आठ विधान क्रमश सुप्रसिद्ध गायक वर्धमान चोपड़ा निर्मल पारख, पूनम चोपड़ा द्वारा संगीतमय प्रस्तुतियो व भजनों से लगातार 4 घंटे तक मंदिर व  दादाबाड़ी प्रांगण में भक्ति रस की गंगा प्रवाहित होती रही। यही नही निर्मल पारख़ के भजन के ये बोल, चांद सा सुंदर चेहरा तेरा नैन है अमृत के प्याले, वो तो कोई और नहीं है वो तो है मेरे दादा गुरु प्यारे के द्वारा सभी भक्तो को भक्ति के आनंद से सरोबार कर दिया। इस प्रकार अष्ठ प्रकारी पूजा  क्रमश, जल,चंदन,पुष्प, धूप, दीप , चावल, नेवेध्य, फल, का दादा गुरुदेव की मूर्ति के सम्मुख समर्पण लाभार्थी परिवारों द्वारा किया गया। तत्पश्चात, वस्त्र पूजा एवम अंतिम विधान ध्वजपूजन में महिलाओं द्वारा सिर में चांदी की 11 ध्वजा को रखकर कलात्मक मार्बल की छतरी की तीन फेरी देकर शिखर पर ध्वजा विराजमान की गई पूजा का समापन आरती एवम मंगल दीपक को साथ संपन्न हुआ।

पूजा में प्रमुख रूप से पदम गोलछा, महेन्द्र कोचर , वर्धमान चोपड़ा , निर्मल पारख , प्रवीण चोपड़ा , संतोष झाबक , जयंती लोढ़ा , अशोक कोचर , डॉ योगेश बंगानी, विमल सुराना , ललित लुनिया ,  प्रमोद टाटिया , तनय लुनिया , शैला बरडिया , वर्षा सांखला , कीर्तिलोढ़ा , दिप्ती बैद ,पूनम बरमट आदि सैकड़ों भक्त उपस्थित रहे।

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