दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम अब होगा बिरसा मुंडा चौक


नई दिल्ली।  राजधानी दिल्ली के सराय काले खां आईएसबीटी चौक का नाम अब भगवान बिरसा मुंडा चौक हो गया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को एक जनसभा में इसका ऐलान किया। स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर यह निर्णय लिया गया है। भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में अविभाजित बिहार के आदिवासी क्षेत्र उलिहातू में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और धर्मांतरण गतिविधियों के खिलाफ आदिवासियों को लामबंद किया था।

खट्टर ने कहा कि सराय काले खां चौक अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा। खट्टर ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, "मैं आज घोषणा कर रहा हूं कि यहां आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर स्थित बड़े चौक को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जाना जाएगा। इस प्रतिमा और उस चौक का नाम देखकर न केवल दिल्ली के नागरिक बल्कि अंतर्राज्यीय बस स्टैंड पर आने वाले लोग भी निश्चित रूप से उनके जीवन से प्रेरणा लेंगे।"

केंद्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा कि यह निर्णय स्वतंत्रता सेनानी को सम्मानित करने के लिए लिया गया है ताकि क्षेत्र में आने वाले लोग उनके बारे में जान सकें और उनके जीवन से प्रेरित हो सकें। इससे पहले आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के साथ मिलकर भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर राजधानी दिल्ली में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया।

भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम के नायक बिरसा मुंडा ने छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी समुदाय को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ "उलगुलान" (विद्रोह) के रूप में जानी जाने वाली सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व किया। वो छोटानागपुर पठार क्षेत्र में मुंडा जनजाति से थे। उन्होंने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश उपनिवेश के तहत बिहार और झारखंड बेल्ट में उठे भारतीय आदिवासी जन आंदोलन का नेतृत्व किया।

मुंडा ने ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई जबरन भूमि हड़पने के खिलाफ लड़ने के लिए आदिवासियों को एकजुट किया, जिससे आदिवासी बंधुआ मजदूर बन गए और उन्हें घोर गरीबी में धकेल दिया गया। उन्होंने अपने लोगों को अपनी जमीन के मालिक होने और उस पर अपने अधिकारों का दावा करने के महत्व को समझने के लिए प्रभावित किया।

उन्होंने बिरसाईत धर्म की स्थापना की, जो जीववाद और स्वदेशी मान्यताओं का मिश्रण था, जिसमें एक ही ईश्वर की पूजा पर जोर दिया गया था। वे उनके नेता बन गए और उन्हें 'धरती आबा' या धरती का पिता उपनाम दिया गया। 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी।

बता दें कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आज महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर शुक्रवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी। केंद्र सरकार ने 2021 में मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के तौर पर मनाने की घोषणा की थी।

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